मुकम्मल इश्क़ की तलबगार नहीं है आंखे
थोड़ा_थोड़ा ही सही रोज तेरे दीदार की चाहत है
मुकम्मल इश्क़ की तलबगार नहीं है आंखे
थोड़ा_थोड़ा ही सही रोज तेरे दीदार की चाहत है
तुम्हारी याद से दिल में उजाला होने लगता है
तुम्हें जब गुनगुनाता हूँ तो रातें भीग जाती हैं ।
बयां…. से परे है तेरे
खयाल का सुकूं…..
जाने कौन सी भाषा बोलती हैं उसकी
आँखे हर लफ्ज़ कलेजे में उतर जाता है.
कैसे कहें कि हमारा तुमसे कोई रिश्ता नहीं…
आज भी तुम्हारे नाम से हमारी साँसे महक उठती हैं..!!