Khalil Ur Rehman Qamar Shayari
मैं समझा था तुम हो, तो किया और मांगू
मेरी जिंदगी में, मेरी आस तुम हो
ये दुनिया नहीं है, मेरे पास तो क्या
मेरा ये भरम था, मेरे पास तुम हो
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मेरी बरसों की उदासी का सिला कुछ तो मिले
उस से कह दो वो मेरा क़र्ज़ चुकाने आए
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कुछ न रह सका जहाँ विरानियाँ तो रह गईं
तुम चले गए तो क्या कहानियाँ तो रह गईं
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तुम भी वैसे थे मगर तुम को ख़ुदा रहने दिया
इस तरह तुम को ज़माने से जुदा रहने दिया
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ख़्वाब पलकों की हथेली पे चुने रहते हैं
कौन जाने वो कभी नींद चुराने आए
मुझ पे उतरे मेरे अल्हाम की बारिश बन कर
मुझ को इक बूॅंद समंदर में छुपाने आए
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ख़िलाफ़-ए-शर्त-ए-अना था वो ख़्वाब में भी मिले
मैं नींद नींद को तरसा मगर नहीं सोया
ख़िलाफ़-ए-मौसम-ए-दिल था कि थम गई बारिश
ख़िलाफ़-ए-ग़ुर्बत-ए-ग़म है कि मैं नहीं रोया
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आँख में नम तक आ पहुँचा हूँ
उसके ग़म तक आ पहुँचा हूँ
पहली बार मुहब्बत की थी
आख़री दम तक आ पहुँचा हूँ
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ये लौह-ए-इश्क़ पे लिखा है तेरे शहर के लोग
वफ़ा से जीत भी जाएँ तो हार जाएँगे
वो जिन के हाथ में काग़ज़ की कश्तियाँ होंगी
सुना है चंद वही लोग पार जाएँगे
किताब-ए-ज़र्फ़-ए-मोहब्बत पे हाथ रख के कहो
सवाल जान का आया तो वार जाएँगे
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जैसे हर ज़ेहन को ज़ंजीर से डर लगता है
पीर-ओ-मुर्शद मुझे हर पीर से डर लगता है
मक़्तब-ए-फ़िक्र की बोहतात जहाँ होती है
तर्जुमा ठीक है तफ़सीर से डर लगता है
जिसमें तक़दीर बदलने की सहूलत न मिले
ऐसी लिक्खी हुई तक़दीर से डर लगता है
जिससे चुप चाप ज़मीरों को सुलाया जाए
ऐसे कम-ज़र्फ़ की तक़दीर से डर लगता है
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मतलब ये के भूला नहीं हूं, ये भी नहीं के तुम याद आते हो
पहले सब से पहले तुम थे, अब तुम सब के बाद आते हो
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आंखें खाली रेखा लेंगे हम, सारे ख्वाब जला डालेंगे
तेरे नाम पे नफ़रत लिख कर, तेरा नाम मिटा देंगे
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फकत मेरे दिल से उतर जाएगा
बिछड़ना जरूरी बिछड़ जाएगा
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एक चेहरे से उतरती हैं नकाबें कितनी
लोग कितने हमें एक शख्स में मिल जाते हैं
वक्त बदलेगा तू इस बार पुछूंगा उससे
तुम बदलते हो तो क्यों लोग बदलते जाते हैं
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वक्त को तब मैं तेरी रफ्तार कहा करता था
जब तेरे प्यार को ही प्यार कहा करता था
तेरे होने से था समझता दुनिया तुम हो
वैसे दुनिया को मैं बेकार समझता था
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तुम से तुम्हारे बाद यही वास्ता रहा
बिछड़े हुवों में तेरा नाम रहा
लिख तो दिया आज से तुम मेरे नहीं
लेकिन कसम से हाथ मेरा कांपता रहा
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अश्क ए नादान से कहो बाद में पछताएंगे
आप गिर कर मेरी आंखों से किधर जाएंगे,
अपने लफ्जों को तकल्लुम से गिरा कर जाना,
अपने लहजे की थकावत में बिखर जाएंगे,
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इक तेरा घर था मेरी हद ए मुसाफित लेकिन,
अब ये सोचा है कह हम हद से गुज़र जाएंगे,
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तुम से ले जाएँगे हम छीनकर वादे अपने
अब तो क़समों की सदाक़त से भी डर जाएँगे
अपने अफ़कार जला डालेंगे कागज़ कागज़
सोच मर जाएगी तो हम-आप भी मर जाएँगे।।
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इससे पहले कि जुदाई की ख़बर तुमसे मिले
हमने सोचा है कि हम तुमसे बिछड़ जाएँगे
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Mohabbat Bhi Zaroori Thi Lyrics In Hindi – Rahat Fateh Ali Song Lyrics
लफ्ज़ कितने ही तेरे पैरों से लिपटे होंगे
तूने जब आख़िरी खत मेरा जलाया होगा
तूने जब फूल किताबों से निकाले होंगे
देने वाला भी तुझे याद तो आया होगा
तेरी आँखों के दरिया का
उतरना भी ज़रूरी था
मोहब्बत भी ज़रूरी थी
बिछड़ना भी ज़रूरी था
ज़रूरी था की हम दोनों
तवाफ़े आरज़ू करते
मगर फिर आरज़ूओं का
बिखरना भी ज़रूरी था
तेरी आँखों के दरिया का
उतरना भी ज़रूरी था
बताओ याद है तुमको
वो जब दिल को चुराया था
चुराई चीज़ को तुमने
ख़ुदा का घर बनाया था
वो जब कहते थे
मेरा नाम तुम तस्बीह में पढ़ते हो
मोहब्बत की नमाज़ों को
कज़ा करने से डरते हो
मगर अब याद आता है
वो बातें थी महज़ बातें
कहीं बातों ही बातों में
मुकरना भी ज़रूरी था
तेरी आँखों के दरिया का
उतरना भी ज़रूरी था
वही हैं सूरतें अपनी
वही मैं हूँ, वही तुम हो
मगर खोया हुआ हूँ मैं
मगर तुम भी कहीं गुम हो
मोहब्बत में दग़ा की थी
सो काफ़िर थे सो काफ़िर हैं
मिली हैं मंज़िलें फिर भी
मुसाफिर थे मुसाफिर हैं
तेरे दिल के निकाले हम
कहाँ भटके कहाँ पहुंचे
मगर भटके तो याद आया
भटकना भी ज़रूरी था
मोहब्बत भी ज़रूरी थी
बिछड़ना भी ज़रूरी था
ज़रूरी था की हम दोनों
तवाफ़े आरज़ू करते
मगर फिर आरज़ूओं का
बिखरना भी ज़रूरी था
तेरी आँखों के दरिया का
उतरना भी ज़रूरी था
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