मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – कितने शीरीं हैं तेरे लब

कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
गालियाँ खा के बे-मज़ा न हुआ – मिर्ज़ा ग़ालिब