शहादत थी मेरी क़िस्मत में जो दी थी ये ख़ू मुझ को
जहाँ तलवार को देखा झुका देता था गर्दन को – मिर्ज़ा ग़ालिब
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मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – रहिए अब ऐसी जगह के
रहिए अब ऐसी जगह के जहां कोई न हो,
हम सुखन कोई न हो और हम ज़बां कोई न हो. – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – मैं भी मुँह में ज़बान
मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ
काश पूछो कि मुद्दआ क्या है – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – जब *तवक़्क़ो ही उठ गई
जब *तवक़्क़ो ही उठ गई ‘ग़ालिब’,
क्यूँ किसी का गिला करे कोई! – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – क़ासिद के आते आते ख़त
क़ासिद के आते आते ख़त इक अौर लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – जला है जिस्म जहाँ दिल
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – बे ख़ुदी बे सबब नहीं
बे ख़ुदी बे सबब नहीं ग़ालिब
कुछ तो है जिसकी पर्दा दारी है – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – इस सादगी पे कौन न
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं – मिर्ज़ा ग़ालिब