हसरत मोहानी शायरी – भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर

भुलाता लाख हूँ लेकिन बराबर याद आते हैं
इलाही तर्के-उल्फ़त पर वो क्योंकर याद आते हैं – हसरत मोहानी

हसरत मोहानी शायरी – दावा-ए-आशिक़ी है तो ‘हसरत’ करो

दावा-ए-आशिक़ी है तो ‘हसरत’ करो निबाह
ये क्या के इब्तिदा ही में घबरा के रह गए – हसरत मोहानी