Hindi Shayari – मुकम्मल इश्क़ की तलबगार नहीं है

मुकम्मल इश्क़ की तलबगार नहीं है आंखे

थोड़ा_थोड़ा ही सही रोज तेरे दीदार की चाहत है

Hindi Shayari – जाने कौन सी भाषा बोलती हैं

जाने  कौन सी भाषा बोलती हैं  उसकी

आँखे  हर  लफ्ज़  कलेजे में  उतर जाता है.

मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – जला है जिस्म जहाँ दिल

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है – मिर्ज़ा ग़ालिब

मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त

इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया – मिर्ज़ा ग़ालिब