मुकम्मल इश्क़ की तलबगार नहीं है आंखे
थोड़ा_थोड़ा ही सही रोज तेरे दीदार की चाहत है
मुकम्मल इश्क़ की तलबगार नहीं है आंखे
थोड़ा_थोड़ा ही सही रोज तेरे दीदार की चाहत है
जाने कौन सी भाषा बोलती हैं उसकी
आँखे हर लफ्ज़ कलेजे में उतर जाता है.
तुम्हारे पास आते हैं तो साँसें भीग जाती हैं
मोहब्बत इतनी मिलती है कि आँखें भीग जाती हैं ।