मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक – मिर्ज़ा ग़ालिब