जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है – मिर्ज़ा ग़ालिब
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मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त
इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया – मिर्ज़ा ग़ालिब