ज़िंदगी जब अज़ाब होती है
आशिक़ी कामयाब होती है – दुष्यंत कुमार
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दुष्यंत कुमार शायरी – कैसे आकाश में सूराख़ नहीं
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीअ’त से उछालो यारो – दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार शायरी – कहाँ तो तय था चराग़ाँ
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए – दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार शायरी – रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा
रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो – दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार शायरी – तुम्हारे पाँव के नीचे कोई
तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं – दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार शायरी – इस नदी की धार में
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है ….
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है – दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार शायरी – जिसे मै ओढता बिछाता हूं
जिसे मै ओढता बिछाता हूं
वही गज़ल तुम्हे सुनाता हूं
एक जंगल है तेरी आंखो मे
मै जहां राह भूल जाता हूं – दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार शायरी – हो गई है पीर पर्वत-सी
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए..! – दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार शायरी – आज यह दीवार
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। – दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार शायरी – मैं बहुत कुछ सोचता रहता
मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं,
बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार – दुष्यंत कुमार