नक़्श लायलपुरी शायरी – सींचा था जिस को ख़ूने

सींचा था जिस को ख़ूने तमन्ना से रात दिन
गुलशन में उस बहार के हक़दार हम नहीं – नक़्श लायलपुरी

नक़्श लायलपुरी शायरी – बड़ा अजीब है अफ़साना-ए-मुहब्बत भी

बड़ा अजीब है अफ़साना-ए-मुहब्बत भी
ज़बाँ से क्या ये निगाहों से भी कहा न गया – नक़्श लायलपुरी

नक़्श लायलपुरी शायरी – हमने क्या पा लिया हिंदू

हमने क्या पा लिया हिंदू या मुसलमाँ होकर।।
क्यों न इंसाँ से मुहब्बत करें इंसां होकर।। – नक़्श लायलपुरी

नक़्श लायलपुरी शायरी – मैं हूँ महबूब अंधेरों का

मैं हूँ महबूब अंधेरों का मुझे हैरत है
कैसे पहचान लिया तुमने उजालो मुझको – नक़्श लायलपुरी