मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती – मिर्ज़ा ग़ालिब
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मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ
मैं और बज़्म-ए-मय से यूँ तिश्ना-काम आऊँ
गर मैं ने की थी तौबा साक़ी को क्या हुआ था – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – मैं ने चाहा था कि
मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ
वो सितमगर मिरे मरने पे भी राज़ी न हुआ – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – न था कुछ तो खुदा
न था कुछ तो, खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता…। – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – उनके देखे से जो आ
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है। – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – हम वहाँ हैं जहाँ से
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – दिल ही तो है न
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – दे मुझ को शिकायत की
दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर
कुछ तुझ को मज़ा भी मिरे आज़ार में आवे – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ
हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन ओ दिल अज़ीज़ उस की गली में जाए क्यूँ – मिर्ज़ा ग़ालिब
मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी – और बाज़ार से ले आए
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
साग़र-ए-जम से मिरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है – मिर्ज़ा ग़ालिब