क़ाबिल अजमेरी शायरी – अब ये आलम है कि

अब ये आलम है कि ग़म की भी ख़बर होती नहीं
अश्क बह जाते हैं लेकिन आँख तर होती नहीं – क़ाबिल अजमेरी

क़ाबिल अजमेरी शायरी – ऐ दौलत-ए-सुकूँ के तलब-गार देखना

ऐ दौलत-ए-सुकूँ के तलब-गार देखना
शबनम से जल गया है गुलिस्ताँ कभी कभी – क़ाबिल अजमेरी

क़ाबिल अजमेरी शायरी – रंग-ए-महफ़िल चाहता है इक मुकम्मल

रंग-ए-महफ़िल चाहता है इक मुकम्मल इंक़लाब
चंद शम्ओं के भड़कने से सहर होती नहीं – क़ाबिल अजमेरी

क़ाबिल अजमेरी शायरी – तुम न मानो मगर हक़ीक़त

तुम न मानो मगर हक़ीक़त है
इश्क़ इंसान की ज़रूरत है – क़ाबिल अजमेरी