अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया
नूह नारवी
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गो उस में अब नहीं हैं लड़कपन की शोख़ियाँ
लेकिन शबाब आने से मग़रूर तो हुआ
शाकिर कलकत्तवी
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जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
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तसव्वुर में भी अब वो बे-नक़ाब आते नहीं मुझ तक
क़यामत आ चुकी है लोग कहते हैं शबाब आया
हफ़ीज़ जालंधरी
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नक़ाब क्या छुपाएगा शबाब ए हुस्न को,
निगाह ए इश्क तो पत्थर भी चीर देती है
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मेरी निगाह-ए-शौक़ भी कुछ कम नहीं मगर,
फिर भी तेरा शबाब, तेरा ही शबाब है।
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ये शोख़ियाँ तिरी इस कम-सिनी में ऐ ज़ालिम
क़यामत आएगी जिस दिन शबाब आएगा
हिज्र नाज़िम अली ख़ान
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ये शोख़ियाँ ये ग़फ़लतें ये होश्यारियाँ
अंदाज़ सौ तरह के हैं तेरे शबाब में
साइब आसमी
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कलियों पे शबाब आए फूलों पे निखार आए
इक आप के आने से गुलशन में बहार आए
समर ग़ाज़ीपुरि
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ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का
गोया छलक रहा है पियाला शराब का
असर सहबाई
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अल्लाह रे ये रंग ये जल्वा शबाब का
जैसे खिंचा हो आँख में नक़्शा शराब का
ऐश मेरठी
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दौर-ए-शबाब ज़ुल्म-ओ-वफ़ा याद आ गया
वो जब भी याद आए ख़ुदा याद आ गया
मोहम्मद मूसा
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आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है
दुनिया समझ रही है कि आँखों में ख़्वाब है
अख़्तर अंसारी
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भर दीं शबाब ने ये उन आँखों में शोख़ियाँ
तिल भर भी अब जगह नहीं उन में हया की है
वसीम ख़ैराबादी
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असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
कहाँ गया मिरा बचपन ख़राब कर के मुझे
मुज़्तर ख़ैराबादी
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खुलने ही लगे उन पर असरार-ए-शबाब आख़िर
आने ही लगा हम से अब उन को हिजाब आख़िर
वासिफ़ देहलवी
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मुझे कल मिला जो सर-ए-चमन वो तमाम नख़्ल-ए-शबाब सा
कोई बात उस की शराब सी कोई हर्फ़ उस का गुलाब सा
नामी अंसारी
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अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ
गुलाब अपनी ही ख़ुश्बू से डरने लगते हैं
बद्र वास्ती
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इस कम-सिनी में देखिए आलम शबाब का
जैसे चमन में फूल खिला हो गुलाब का
नसीम ज़ैदी त्रिशूल
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शबाब हो कि न हो हुस्न-ए-यार बाक़ी है
यहाँ कोई भी हो मौसम बहार बाक़ी है
जलील मानिकपूरी