Manhar Seth Shayari | Tum Nahi Jaanti Poetry | Love Poetry | The Social House Poetry

Tum Nahi Jaanti By Manhar Seth | Love Poetry | The Social House Poetry

मुझसे इश्क़ करते हुए घबराए पहले तुम्हीं थे
हमारी मोहब्बत में शर्माए पहले तुम्हीं थे
और ये माना कि तुझे बाहों में पहले मैने भरा था
पर मेरे होठों के पास आए पहले तुम्हीं थे
तुम नहीं जानती
तुम नहीं जानती कि वो रातों को उठना
तुम्हें देखना
और तुम्हें चूम के सो जाना
कितना सुकून देता है मुझे ये तुम नहीं जानतीं
तुम नहीं जानती कैसी तुम्हारी साँसे
और तुम्हारी आहे गर्म रखती है
मुझे सर्द रातों में तुम नहीं जानतीं
तुम नहीं जानती कैसे ख्वाहिश है पूरी जीवन गुजारने का
तुम्हारी जुल्फों के साए में तुम नहीं जानतीं
तुम नहीं जानती कितने लड़के तुम्हारे लबों को तरसते हैं
कितने बादल तुम्हें छूने को बरसते हैं
तुम नहीं जानती
ये इश्क़ क्या हैं ये इश्क़ क्या हैं
ये तन्हा रातें है
ये अधुरी बाते है
ये मचलती साँसें है
नामुकम्मल मुलाकातें है
थरथराते लब है
ये इश्क़ सब है
कि तुम नहीं जानतीं
तुम नहीं जानती ये पाना किसे कहते हैं
तुम नहीं जानती ये खोना किसे कहते हैं
तुम नहीं जानती ये हसना किसे कहते हैं
तुम नहीं जानती ये रोना किसे कहते हैं
तुम नहीं जानती कैसे लोग रूह में उतर जाते है, निकलते नहीं हैं
कैसे एक तरफा इश्क़ में बर्बाद हो जाते हैं, सम्भलतें नहीं है
तुम नहीं जानतीं आज भी खुशबू आती है तुम्हारी
महका जाती है मेरे बदन को
तुम नहीं जानती कि बैर है मेरा इन हवाओं से
जो आते जाते तुम्हे छूती है
तुम नहीं जानती दुश्मनी है तुम्हारे उस कंगन से
जो तुम्हारी पूरे दिन नाजुक कलाई पे बैठ के आराम फरमाता रहता है
तुम नहीं जानती कि कैसे जलता हूँ उन लोगों से
जिनको तुम बाहों में भर लेती हो
इसमें मुझे जॉन एलिया का शेर याद आता है
‘कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे’
और यार सुनो…यार सुनो
कुछ हाल सुनाओ उसकी कयामत बाहों के
अजी जो उसमें सिमटते होंगे वो मर जाते होंगे
कि तुम नहीं जानती उस दुनिया का हाल क्या है
जिस दुनिया में हम दोनो साथ है
तुम नहीं जानती कैसे मरना भी आसान लगता था
जब हम दोनों साथ थे
पर आज जीना भी मुश्किल लगता है
जब हम दोनों बिछड़ गए हैं
तुम नहीं जानतीं
तुम नहीं जानती कैसे तुम ही मेरी तकल्लुफ़ का बाईस हो
पर तुम ये भी तो नहीं जानती
कि तुम ही मेरी खुशियों की वजह भी हो
तुम नहीं जानती कैसे हर रोज़ ढूंढता रहता हूँ
तरीके
ताकि वापस मोड़ लाऊं उस गुजरे वक्त को
और उस सबको
जिसमें मेरे हाथों में तुम्हारा हाथ था
और वो पूरा जहां मुकम्मल था
तुम नहीं जानती कैसे आज भी
अपने मुँह में एक निवाला डालने से पहले
ये सोचता हूँ क्या तुमने खाना खाया है या नहीं
तुम नहीं जानती कैसे कतराता हूँ आज भी
किसी लड़की से बात करने में
क्योंकि ये तुमसे और तुम्हारे इश्क़ से बेवफाई लगती हैं
तुम नहीं जानती कैसे काटे थे वो दिन
जो तुम्हारे हिज्र के मौसम लाये थे
तुम नहीं जानती कैसे हर जाम पे तुम्हारा नाम लिखा है
तुम नहीं जानती कैसे चैट्स पढ़ता रहता हूँ हम दोनों की आज भी
कैसे आईने में देख के सजता सवरता रहता हूँ आज भी
तुम नहीं जानती कि सम्भाल के रखी है वो सारी चीजे
जैसे वो आई लव यू वाला काल
जैसे वो टूटी हुई फ़ोन की चार्जिंग वायर
वो तुम्हारी, मेरी तस्वीर वाला फोटो फ्रेम
वो तुम्हारी गानों की प्लेलिस्ट
और सब…
ये सब जो तुम नहीं जानती
ये सब जो तुम नहीं जानती
पर शायद आज जान जाओगी
जान लेना क्योंकि जान ही तो बसती है तुम्हारे में मेरी
वो ‘मनहर’ जिसे तुम कभी नहीं जान सकी
वो ‘मनहर’ जिसे तुम कभी नहीं जान सकी।
– मनहर सेठ