बशीर बद्र शायरी – उड़ने दो परिंदों को अभी

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते – बशीर बद्र

बशीर बद्र शायरी – अजीब शख़्स है नाराज़ होके

अजीब शख़्स है नाराज़ होके हंसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे – बशीर बद्र

बशीर बद्र शायरी – परखना मत परखने में कोई

परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता – बशीर बद्र

बशीर बद्र शायरी – मैं तमाम तारे उठा-उठा कर

मैं तमाम तारे उठा-उठा कर ग़रीबों में बाँट दूँ।
कभी एक रात वो आसमाँ का निज़ाम दे मेरे हाथ में, – बशीर बद्र