अहमद फ़राज़ शायरी – कुछ इस तरह से गुज़ारी

कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी जैसे
तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा – अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़ शायरी – अब तो ये आरज़ू है

अब तो ये आरज़ू है कि वो ज़ख़्म खाइए
ता-ज़िंदगी ये दिल न कोई आरज़ू करे – अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़ शायरी – वो ख़ार ख़ार है शाख़-ए-गुलाब

वो ख़ार ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिंद
मैं ज़ख़्म ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे – अहमद फ़राज़

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अहमद फ़राज़ शायरी – दिल के रिश्तों कि नज़ाक़त

दिल के रिश्तों कि नज़ाक़त वो क्या जाने ‘फ़राज़’,
नर्म लफ़्ज़ों से भी लग जाती हैं चोटें अक्सर!! – अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़ शायरी – दो घड़ी उस से रहो

दो घड़ी उस से रहो दूर तो यूँ लगता है
जिस तरह साया-ए-दीवार से दीवार जुदा – अहमद फ़राज़