अहमद फ़राज़ शायरी – कुछ इस तरह से गुज़ारी

कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी जैसे
तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा – अहमद फ़राज़

अहमद फ़राज़ शायरी – अब तो ये आरज़ू है

अब तो ये आरज़ू है कि वो ज़ख़्म खाइए
ता-ज़िंदगी ये दिल न कोई आरज़ू करे – अहमद फ़राज़

Abrar Kashif Shayari | Abrar Kashif Poetry In Hindi


अगर तुम हो तो घबराने की कोई बात थोड़ी है
ज़रा सी बूँदाबाँदी है, बहुत बरसात थोड़ी है

ये राह-ए-इश्क़ है इसमें कदम ऐसे ही उठते है
मोहोब्बत सोचने वालों के बस की बात थोड़ी है

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Abrar Kashif Shayari

मंज़िलों का कौन जाने रहगुज़र अच्छी नहीं
उसकी आँखें ख़ूबसूरत है नज़र अच्छी नहीं
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Abrar Kashif Shayari

अब तो लगता है कि आ जायेगी बारी मेरी
किसने दे दी तेरी आँखों को सुपारी मेरी
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Abrar Kashif Shayari

दिन में मिल लेते कहीं रात ज़रूरी थी क्या?
बेनतीजा ये मुलाक़ात ज़रूरी थी क्या

मुझसे कहते तो मैं आँखों में बुला लेता तुम्हें
भीगने के लिए बरसात ज़रूरी थी क्या

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Abrar Kashif Shayari

घर की तक़सीम में अंगनाई गवा बैठे है
फूल गुलशन से शिनसाई गवा बैठे है

बात आँखों से समझ लेने का दावा मत कर
हम इसी शौक में बीनाई गवा बैठे है

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Abrar Kashif Shayari

हर इक लफ़्ज़ के तेवर ही कुछ और होते है
तेरे नगर के सुखनवर ही कुछ और होते है

तुम्हारी आँखों में वो बात ही नहीं है ऐ दोस्त
डुबोने वाले समंदर ही और होते है

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Abrar Kashif Shayari

मेरा अरमान मेरी ख्वाहिश नहीं है
ये दुनिया मेरी फ़रमाहिश नहीं है

मैं तेरे ख्वाब वापस कर रहा हूँ
मेरी आँखों में गुंजाइश नहीं है

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Abrar Kashif Shayari

आवारगी के सारे हवालों को खुला छोड़
सेहरा की याद पाँव की छालों को खुला छोड़

करती है तो करने दे हवाओं को शरारत
मौसम का तकाज़ा है कि बालों को खुला छोड़

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Abrar Kashif Poetry

तू अपनी चिठियों में ‘मीर’ के अशआर लिखती है
मोहब्बत के बिना है ज़िन्दगी बेकार लिखती है

तेरे ख़त तो इबारत हैं वफ़ादारी की क़समों से
जिन्हें मैं पढ़ते डरता हूँ वही हर बार लिखती है

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Abrar Kashif Poetry

तू पैरोकार लैला की है शिरीन की पुजारन है
मगर तू जिसपे बैठी है वो सोने का सिंहासन है

तेरी पलकों के मस्कारे, तेरे होठों की ये लाली
ये तेरे रेश्मी कपड़े ये तेरे कान की बाली

गले का ये चमकता हार, हाथों के तेरे कंगन
ये सब के सब है मेरे दिल मेरे एहसास के दुश्मन

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Abrar Kashif Poetry

इनके सामने कुछ भी नहीं है प्यार की कीमत
वफ़ा का मोल क्या, क्या है ऐतबार की क़ीमत

शकस्ता कश्तियों टूटी हुई पतवार की क़ीमत
है मेरी जीत से बढ़कर तो तेरी हार की कीमत

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Abrar Kashif Poetry

हकीकत खून के आंसू तुझे रुलवायेगी जाना
तू अपने फैसले पर बाद में पछ्तायेगी जाना

मेरे काँधे पर छोटे भाइयों की ज़िम्मेदारी है
मेरे माँ बाप बूढ़े है बेहन भी तो कंवारी है

बहे न मौसमों के वार को तू सेह न पायेगी
हवेली छोड़ कर तू इक झोपड़ी में रह ना पायेगी

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Abrar Kashif Poetry

अमीरी तेरी मेरी मुफलिसी को छल नहीं सकती
तू नंगे पाँव तो कालीन पर चल नहीं सकती

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Abrar Kashif Poetry

अपने दिल में बसाओगे हमको
और गले से लगाओगे हमको
हम नहीं इतने प्यार के काबिल
तुम तो पागल बनाओगे हमको

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Abrar Kashif Poetry

दिल को तेरी ख्वाहिश पहली बार हुई
इस सेहरा में बारिश पहली बार हुई

मांगने वाले हीरे मोती मांगते है
अश्कों की फ़रमाहिश पहली बार हुई
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Abrar Kashif Shayari In Hindi

तरीके और भी है इस तरह परखा नहीं जाता
चरागों को हवा के सामने रखा नहीं जाता

मोहोब्बत फैसला करती है पहले चंद लम्हों में
जहा इश्क़ होता है वहां सोचा नहीं जाता

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Abrar Kashif Ghazal In Hindi

वो तो अच्छा है ग़ज़ल तेरा सहारा है मुझे
वर्ना फ़िक्रों ने तो बस घेर के मारा है मुझे

जिसकी तस्वीर, मैं कागज़ पे बना भी न सका
उसने मेहँदी से हथेली पे उतारा है मुझे

ग़ैर के हाथों से मरहम मुझे मंजूर नहीं
तुम मगर ज़ख्म भी दे दो तो गवारा है मुझे

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एहसान दानिश की शायरी | ehsan danish shayari in hindi

“आज उस ने हँस के यूँ पूछा मिज़ाज
उम्र भर के रंज-ओ-ग़म याद आ गए

“‘एहसान’ अपना कोई बुरे वक़्त का नहीं
अहबाब बेवफ़ा हैं ख़ुदा बे-नियाज़ है

“और कुछ देर सितारो ठहरो
उस का व’अदा है ज़रूर आएगा

“किस किस की ज़बाँ रोकने जाऊँ तिरी ख़ातिर
किस किस की तबाही में तिरा हाथ नहीं है

“कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर
तोहमत तराशते हैं हवा के दबाव पर

“ज़ख़्म पे ज़ख़्म खा के जी अपने लहू के घूँट पी
आह न कर लबों को सी इश्क़ है दिल-लगी नहीं

“ज़ब्त भी सब्र भी इम्कान में सब कुछ है मगर
पहले कम-बख़्त मिरा दिल तो मिरा दिल हो जाए

“जो दे रहे हो ज़मीं को वही ज़मीं देगी
बबूल बोए तो कैसे गुलाब निकलेगा

“तुम सादा-मिज़ाजी से मिटे फिरते हो जिस पर
वो शख़्स तो दुनिया में किसी का भी नहीं है

“न जाने मोहब्बत का अंजाम क्या है
मैं अब हर तसल्ली से घबरा रहा हूँ

“मैं हैराँ हूँ कि क्यूँ उस से हुई थी दोस्ती अपनी
मुझे कैसे गवारा हो गई थी दुश्मनी अपनी

“ये उड़ी उड़ी सी रंगत ये खुले खुले से गेसू
तिरी सुब्ह कह रही है तिरी रात का फ़साना

“रहता नहीं इंसान तो मिट जाता है ग़म भी
सो जाएँगे इक रोज़ ज़मीं ओढ़ के हम भी

“लोग यूँ देख के हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे

“वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
वो हँस पड़े मुझे मुश्किल में डालने के लिए

“हाँ आप को देखा था मोहब्बत से हमीं ने
जी सारे ज़माने के गुनहगार हमीं थे

“हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख
अपनी इक तर्ज़-ए-नज़र ईजाद कर

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Shabab Shayari | शबाब शायरी | Shabab Shayari In Hindi

अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया

नूह नारवी

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गो उस में अब नहीं हैं लड़कपन की शोख़ियाँ
लेकिन शबाब आने से मग़रूर तो हुआ

शाकिर कलकत्तवी

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जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा

हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता

अमीर मीनाई

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तसव्वुर में भी अब वो बे-नक़ाब आते नहीं मुझ तक
क़यामत आ चुकी है लोग कहते हैं शबाब आया
हफ़ीज़ जालंधरी

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नक़ाब क्या छुपाएगा शबाब ए हुस्न को,
निगाह ए इश्क तो पत्थर भी चीर देती है

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मेरी निगाह-ए-शौक़ भी कुछ कम नहीं मगर,
फिर भी तेरा शबाब, तेरा ही शबाब है।

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ये शोख़ियाँ तिरी इस कम-सिनी में ऐ ज़ालिम
क़यामत आएगी जिस दिन शबाब आएगा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

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ये शोख़ियाँ ये ग़फ़लतें ये होश्यारियाँ
अंदाज़ सौ तरह के हैं तेरे शबाब में

साइब आसमी

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कलियों पे शबाब आए फूलों पे निखार आए
इक आप के आने से गुलशन में बहार आए

समर ग़ाज़ीपुरि

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ये हुस्न-ए-दिल-फ़रेब ये आलम शबाब का
गोया छलक रहा है पियाला शराब का

असर सहबाई

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अल्लाह रे ये रंग ये जल्वा शबाब का
जैसे खिंचा हो आँख में नक़्शा शराब का

ऐश मेरठी

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दौर-ए-शबाब ज़ुल्म-ओ-वफ़ा याद आ गया
वो जब भी याद आए ख़ुदा याद आ गया

मोहम्मद मूसा

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आईना-ए-निगाह में अक्स-ए-शबाब है
दुनिया समझ रही है कि आँखों में ख़्वाब है

अख़्तर अंसारी

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भर दीं शबाब ने ये उन आँखों में शोख़ियाँ
तिल भर भी अब जगह नहीं उन में हया की है

वसीम ख़ैराबादी

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असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
कहाँ गया मिरा बचपन ख़राब कर के मुझे

मुज़्तर ख़ैराबादी

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खुलने ही लगे उन पर असरार-ए-शबाब आख़िर
आने ही लगा हम से अब उन को हिजाब आख़िर

वासिफ़ देहलवी

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मुझे कल मिला जो सर-ए-चमन वो तमाम नख़्ल-ए-शबाब सा
कोई बात उस की शराब सी कोई हर्फ़ उस का गुलाब सा

नामी अंसारी

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अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ
गुलाब अपनी ही ख़ुश्बू से डरने लगते हैं

बद्र वास्ती

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इस कम-सिनी में देखिए आलम शबाब का
जैसे चमन में फूल खिला हो गुलाब का

नसीम ज़ैदी त्रिशूल

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शबाब हो कि न हो हुस्न-ए-यार बाक़ी है
यहाँ कोई भी हो मौसम बहार बाक़ी है

जलील मानिकपूरी

Jaun Elia Shayari – Wo Baatein Kha Gayi Mujhko

वो बातें खा गईं मुझको,
जो बातें पी गया था मैं…..

Hum Tere Sheher Mein Aaye Hain – Qaisar Ul Jaafri – Ghulam Ali

हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफ़िर की तरह
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे
हम तेरे शहर में…

मेरी मंज़िल है, कहाँ मेरा ठिकाना है कहाँ
सुबह तक तुझसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाँ
सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे
हम तेरे शहर में…

अपनी आँखों में छुपा रक्खे हैं जुगनू मैंने
अपनी पलकों पे सजा रक्खे हैं आँसू मैंने
मेरी आँखों को भी बरसात का मौका दे दे
हम तेरे शहर में…

आज की रात मेरा दर्द-ऐ-मोहब्बत सुन ले
कँप-कँपाते हुए होठों की शिकायत सुन ले
आज इज़हार-ए-ख़यालात का मौका दे दे
हम तेरे शहर में…

भूलना ही था तो ये इक़रार किया ही क्यूँ था
बेवफ़ा तुने मुझे प्यार किया ही क्यूँ था
सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे
हम तेरे शहर में…

Lyrics By: कैसर उल जाफ़री
Performed By: गुलाम अली